लेकर पीला पीला थैला,
पत्र बाँटने आता,
यह है मुन्शीराम डाकिया,
सब की चिठ्ठी लाता ।।
सर्दी हो या गर्मी,
पानी गिरता झरझर,
चला जाएँगा नही रुकेगा,
चिठ्ठी देता घरघर ।।
बड़े डाकखाने से आता,
लाता कभी रुपैया,
कभी किताबें दे जाता है,
मुझ को हँस हँस भैया ।।
गाँव गाँव जाता है,
पर कभी नहीं थकता है,
लाता है सब की खुशखबरी,
सब के मन को भाता है ।।
पत्र बाँटने आता,
यह है मुन्शीराम डाकिया,
सब की चिठ्ठी लाता ।।
सर्दी हो या गर्मी,
पानी गिरता झरझर,
चला जाएँगा नही रुकेगा,
चिठ्ठी देता घरघर ।।
बड़े डाकखाने से आता,
लाता कभी रुपैया,
कभी किताबें दे जाता है,
मुझ को हँस हँस भैया ।।
गाँव गाँव जाता है,
पर कभी नहीं थकता है,
लाता है सब की खुशखबरी,
सब के मन को भाता है ।।
This poem was in my 5th Standard Hindi textbook in 1985-86. Please let me know the poet if you know the one.
ही कविता इथे नोंदवल्याबद्दल धन्यवाद. पण ती तुम्ही न लिहिल्याचा उल्लेख हवा. मला हे शाळेत वाचल्याचं आठवलं नसतं तर मी ती तुमची कविता समज़लो असतो. मराठीत जे साकी मात्रावृत्त आहे (१६ + १२ मात्रा), तसं हे हिंदीतलं 'सार' नामक छंदाचं उदाहरण आहे. पण काही ओळींमधे मात्रासंख्या वेगळी आहे. कविनी ते स्वातंत्र्य घेतलं असेल. तुम्ही कविता ज़शीच्या तशी उतरवली आहे, की आठवणीबरहुकुम?
ReplyDeleteलेकर पीला पीला थैला, (१६+१२)
पत्र बाँटने आता,
यह है मुन्शीराम डाकिया,
सब की चिठ्ठी लाता ।। (१६+१२)
सर्दी हो या गर्मी, (१२+१२) (चाहे गर्मी?)
पानी गिरता झरझर,
चला जाएँगा नही रुकेगा, (१६+१२) (एँ=लघु?)
चिठ्ठी देता घरघर ।।
बड़े डाकखाने से आता, (१६+१२)
लाता कभी रुपैया,
कभी किताबें दे जाता है,
मुझ को हँस हँस भैया ।। (१६+१२)
गाँव गाँव जाता है, (पर यह?) (१२+१४)
पर कभी नहीं थकता है, (कभी नहीं है थकता?)
लाता है सब की खुशखबरी,
सब के मन को भाता (है) ।। (१६+१२(+२))
अनेक वर्षांनी ही कविता वाचून फारच आनंद झाला.
Hmm. I think your suggestions are right. I also read the same wording on a different site.
ReplyDeletehttp://dakbabu.blogspot.in/2012/09/blog-post.html