Tuesday, 24 February 2009

सुभाषितम्.....

सुखस्य दु:खस्य कोऽपि न दाता
परो ददाति इति कुबुद्धिरेषा ।
अहं करोमीति वृथाभिमान:
स्वकर्मसूत्रे ग्रथितो हि लोक:।।

There is no one who gives us happiness or pain. The thinking that someone else gives it is totally wrong. The feeling ‘I do’ (I’m the doer) is wrong. Every person is bonded with the `Karma’ of his/her previous birth (Whatever happens with us is an effect of our previous birth behaviour).

सुख या दुःख देनेवाला कोई भी नहीं होता। दूसरा कोई हमें यह देता है, यह विचार गलत है। "मैं करता हूँ", यह अभिमान गलत है। सभी अपने-अपने पूर्वजन्म के कर्मों से बन्धे हुए होते हैं।


Original post : सुभाषितम्.....

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