Monday 21 June 2010
Monday 14 June 2010
मन को अति भावे प्रसूनजी के गीत।
भारतीय चित्रपट उद्योग से जुडे हुएँ प्रख्यात गीतकार महामहिम प्रसून जोशीजी का जन्म उत्तराखण्ड के अल्मोडा में १६ सितंबर १९७१ में हुआ । उन्होने अपने व्यावसायिक लेखन का आरंभ विज्ञापनों के संहिताओं के लेखन से किया और फिर धीरे धीरे वे भारतीय चित्रपटों के लिएँ गीत लिखने लगे ।
उनकी एक विशेषता यह है की उन्होने निश्चय किया के वे कतई प्यार, मोहब्बत, इश्क जैसे घिसे पिटे शब्दों का प्रयोग अपने गीतों में नहीं करेंगे । इस कारण उनके द्वारा रचें गएँ चित्रपट गीतों के बोल न केवल लोगों के द्वारा सराहे गएँ अपितु वे हृदयस्थ हो गएँ हैं । उदाहरण के तौर पर तारे जमीन पर, हम तुम, दिल्ली ६, रंग दे बसंती यह चित्रपट भले ही २-३ साल पहले आएँ थे पर उन चित्रपटों के गीतों को आज भी रेडियो पर बार बार सुनाया जाता हैं ।
हांल ही में मैंने एक पुस्तक में पढ़ा की एक समय था जब हिंदी चित्रपटों के गीतों और संवादो के लेखन में देशज या तद्भव, तत्सम शब्दों उपयोग अधिक होता था । परन्तु बाद में हिंदी चित्रपटों का चलन पाकिस्तान एवं मध्य पूर्वी देशों में बढ़ाने हेतु उनमें उर्दू शब्दों के उपयोग को अत्यधिक महत्त्व दिया गया । इस कारण हिंदी चित्रपटों में हिंदी की विभिन्न बोलिओं का प्रयोग कम होता गया ।
परन्तु पिछले साल प्रसूनजी ने खड़ी बोली और संस्कृत के शब्दों का अद्भूत मिश्रण कर "मन को अति भावे सैंया" जैसा एक हृदयस्पर्शी, अनुठा चित्रपट गीत लिखा जिसने लोगों के मन को छू लिया है । उसमें जो विशुद्ध हिंदी का लहेज़ा है उसकी तो बात ही निराली है ।
इस गीत पर टिप्पणी करते हुएँ मेरे राञ्ची के मित्र और हिंदी साहित्य के व्यासंगी श्री. मनिष कुमारजी अपने ब्लाग में कहते हैं की जब भी हम भावातिरेक में होते हैं तो आंचलिक भाषाओं से जुडे हुएँ शब्दों का प्रयोग करते हैं ।
सच में प्रसूनजी के गीत के शब्दों का जादु मन को उल्लसित कर देता है । 'पुष्प आ गएँ, खिलखिला गएँ, उत्सव मनाता है सारा चमन' यह सुनके अपना मन भी खिलखिला उठता है ।