केसरी बाना सजाएँ, वीर का शृँगार कर । ले चले हम राष्ट्रनौका को भँवर के पार कर ।। धृ ।।
डर नहीं तूफान बादल का अंधेरी रात का । डर नहीं हैं धूर्त दुनिया के कपट का घात का ।।
नयन में ध्रुव ध्येय अनुरुप ही दृढ़ भाव भर, ले चले हम राष्ट्रनौका को भँवर के पार कर ।। १ ।।
है भरा मन में तपस्वी मुनिवरों का त्याग हैं । और हृदयों में हमारे वीरता की आग है ।।
हाथ हैं उद्योग में रत राष्ट्रसेवा धार कर, ले चले हम राष्ट्रनौका को भँवर के पार कर ।। २ ।।
सिंधु से आसाम तक योगी शिला से मान-सर । गुंजते हैं विश्व-जननी प्रार्थना के उच्च-स्वर ।।
सुप्त भावों को जगा उत्साह का संचार कर, ले चले हम राष्ट्रनौका को भँवर के पार कर ।। ३ ।।
स्वार्थ का लव-लेश, सत्ता की हमें चिंता नहीं । प्रान्त भाषा वर्ग का कटू भेद भी छूता नहीं ।।
एक हैं हम एक आशा, योजना साकार कर, ले चले हम राष्ट्रनौका को भँवर के पार कर ।। ४ ।।
शपथ लेकर पूर्वजों की आश हम पूरी करें । मस्त होकर कार्यरत हों, ध्येयमय जीवन धरें ।।
दे रहे युग को चुनौती आज हम ललकार कर, ले चले हम राष्ट्रनौका को भँवर के पार कर ।। ५ ।।
Saturday, 29 November 2008
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Hi I have published this poem on my blog.
ReplyDeleteI hope you dont mind it. I have given back link to your blog.
Thanks